Friday, 29 June 2012
Friday, 8 June 2012
पर्यायवाची शब्द
जिन शब्दों के अर्थ में समानता होती है ,उन्हें समानार्थक या पर्यायवाची शब्द कहते है।
हिन्दी भाषा में एक शब्द के समानअर्थ वाले कई शब्द हमें मिल जाते है, जैसे -
पहाड़ - पर्वत , अचल, भूधर ।
ये शब्द पर्यायवाची कहलाते है। इन शब्दों के अर्थ में समानता होती है,लेकिन प्रत्येक शब्द की अपनी विशेषता होती है।पर्यायवाची शब्दों का प्रयोग करते हुए विशेष सावधानी बरतनी चाहिए । कुछ पर्यायवाची शब्द यहाँ दिए जा रहे है -
आग- अग्नि,अनल,पावक ,दहन,ज्वलन,धूमकेतु,कृशानु ।
अमृत-सुधा,अमिय,पियूष,सोम,मधु,अमी।
असुर-दैत्य,दानव,राक्षस,निशाचर,रजनीचर,दनुज।
आम-रसाल,आम्र,सौरभ,मादक,अमृतफल,सहुकार ।
अंहकार - गर्व,अभिमान,दर्प,मद,घमंड।
आँख - लोचन, नयन, नेत्र, चक्षु, दृग, विलोचन, दृष्टि।
आकाश - नभ,गगन,अम्बर,व्योम, अनन्त ,आसमान।
आनंद - हर्ष,सुख,आमोद,मोद,प्रमोद,उल्लास।
आश्रम - कुटी ,विहार,मठ,संघ,अखाडा।
आंसू - नेत्रजल,नयनजल,चक्षुजल,अश्रु ।
Saturday, 2 June 2012
उड़ी रे पतंग मेरी!
ऐसा माना जाता है कि पतंग का आविष्कार चीन में हुआ.दुनिया की पहली पतंग ४६९ में बनाई गयी थी.धीरे धीरे पतंग बर्मा, जापान, कोरिया, अरब, उत्तरी अफ्रीका और भारत में नजर आने लगीं.प्रारंभ में रेशम के महीन कपड़े से पतंग का निर्माण होता था. वजन में हलकी होने के कारण पतंग आसानी से उड़ सकती थीं.कागज़ का आविष्कार होने के बाद पतले कागज़ से पतंगें बनाई जाने लगीं.गौर करने वाली बात ये है कि पतंग के पारंपरिक रूप से लेकर आधुनिक रूप तक बांस का प्रयोग जारी रहा.भारत की लोकभाषा में पतंग को कनकौए या कनकैया कहकर पुकारा जाता है. थाईलैंड के लोग अपनी प्रार्थनाओं को भगवान तक पहुंचाने के लिए बरसात के दिनों में अपनी-अपनी पतंगे उड़ाया करते थे. बाली में जुलाई महीने के अंत में एक उत्सव में पतंगे उड़ाकर ईश्वर से अच्छी फसल और खुशहाली की प्रार्थना की जाती है. बरमूडा में ईशटर के अवसर पर पतंग उड़ाने का चलन है. हमारे देश भारत में मकर संक्रांति पर पतंग उड़ाने का प्रचलन है.- साभार अहा जिन्दगी
हास्य कविता
काका हाथरसी को हिन्दी हास्य कविताओ का एक सफल कवि माना जाता है. इसीलिए अपनी कविताओं से मन में हंसी की बहार लाने वाले काका हाथरसी की एक हास्य कविता को आपके सामने पेश किया जा रहा है. यह कविता एक पेटू पंडित जी पर आधारित है. तो मजा लीजिए इस मनोरंजक हास्य कविता का.
मम्मी जी ने बनाए हलुआ-पूड़ी आज,
आ धमके घर अचानक, पंडित श्री गजराज.
पंडित श्री गजराज, सजाई भोजन थाली,
तीन मिनट में तीन थालियाँ कर दीं खाली.
मारी एक डकार, भयंकर सुर था ऐसा,
हार्न दे रहा हो मोटर का ठेला जैसा.
मुन्ना मिमियाने लगा, पढने को न जाऊं,
मैं तो हलुआ खाऊंगा बस, और नहीं कुछ खाऊं.
और नहीं कुछ खाऊं, रो मत प्यारे ललुआ,
पूज्य गुरूजी ख़तम कर गए सारा हलुआ.
तुझे अकेला हम हरगिज न रोने देंगे,
चल चौके में, हम सब साथ साथ रोयेंगे.
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